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बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति का वर्णन करें।

प्रश्न . बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति का वर्णन करें।

उत्तर- बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा काफी शोचनीय थी। सम्पूर्ण भारत कई छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। कोई ऐसी सशक्त केन्द्रीय शक्ति नहीं थी जो बाहरी आक्रमण को रोक सकती। देश में चारों ओर अशांति और अव्यवस्था फैली हुई थी। शासक स्वेच्छाचारी थे और उनकी आज्ञा ही कानून थी। सैन्य दृष्टि से भी भारत की स्थिति शोचनीय थी। सामाजिक क्षेत्र में, अलबत्ता, भेदभाव की भावना कम होने लगी थी और आर्थिक
दृष्टि से देश सम्पन्न था।
राजनीतिक अवस्था– बाबर के आक्रमण के समय भारत जिन प्रमुख राज्यों में बंटा था, उनका वर्णन नीचे दिया जा रहा है-
(i) दिल्ली- दिल्ली में उस समय इब्राहीम लोदी का शासन था जिसके समय सल्तनत की शक्ति का ह्रास हो रहा था। इस वजह से सीमाएँ भी सिकुड़ रही थीं। अनेक सूबेदारों ने अपनी-अपनी स्वतन्त्र सत्ता की घोषणा कर दी थी।
(ii) पंजाब- पंजाब सल्तनत का अंग था और वहाँ का सूबेदार दौलत खाँ था जिसके सम्बन्ध इब्राहीम लोदी से कटु हो गये थे। दौलत खाँ ने इब्राहीम के विरुद्ध बाबर से सहायता लेने का प्रयास किया और स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया।
(III) सिन्ध- फिरोज तुगलक ने इस पर विजय प्राप्त कर दिल्ली सल्तनत में मिलाया था, किन्तु तैमूरलंग के आक्रमण के बाद सिंघ पुनः स्वतन्त्र हो गया। 1516 में सिंघ पर कंदहार के शाह बेग अरगों ने अधिकार कर लिया।
(iv) मुलतान— यह भी दिल्ली से स्वतन्त्र हो गया था। यहाँ का अफगान सूबेदार सिंघ लड़ने में लगा था।
(v) बंगाल— फिरोज तुगलक के समय ही बंगाल में हुसैनी वंशी अलाउद्दीन ने अपनी सत्ता स्थापित कर ली थी। 1526 में यहाँ अलाउद्दीन के पुत्र नुसरतशाह शासन कर रहा था जिसे ललित कलाओं और साहित्य में अभिरुचि थी।
(vi)जौनपुर— यहाँ शर्की सुल्तानों का स्वतन्त्र राज्य स्थापित हो चुका था। बाबर के समय यहाँ का शासक नसीर खाँ लोहानी था। यह भी इब्राहीम लोदी से असंतुष्ट था और उसके पतन का आकांक्षी था।
(vii) बिहार— यहाँ विद्रोही सरदारों के नेता दरिया खाँ लोहानी के नेतृत्व में एक स्वतन्त्र राज्य कायम था।
(viii) उड़ीसा– यहाँ शक्तिशाली हिन्दू शासकों का राज्य था। इसने मुस्लिम विजेताओं को बंगाल से दक्षिण की ओर बढ़ने में रोड़े का काम किया था।
(ix) गुजरात— 1940 में गुजरात दिल्ली से अलग हो गया था। बाबर के समय यहाँ का शासक मुज्जफरशाह था। उसने न केवल राजपूतों (राणा सांगा) पर विजय प्राप्त करने का प्रयास किया, वरन दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी के चाचा आलम खाँ को शरण देकर इब्राहीम से टक्कर लेने का साहस किया।
(x) मालवा- तैमूर आक्रमण से सल्तनत की कमजोर हुई हालत का फायदा उठाते हुए मालवा में दिलावर खाँ गोरी ने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना कर ली थी। 1435 में मालवा का गोरी वंश महमूद खां खिलजी के अधीन चला गया। बाबर का समसामयिक मालवा का शासक महमूद द्वितीय था। उसके समय एक राजपूत सरदार मेदिनी राय मालवा के शासन में काफी शक्तिशाली हो गया जो मुसलमानों को नहीं भाया और उन्होंने उसे निकाल फेंकने का प्रयास किया। परन्तु ऐसा हो नहीं पाया। कुल मिलाकर यहाँ अशान्ति और अराजकता भड़क उठी थी।
(xi) चित्तौड़- यहाँ का महत्वपूर्ण शासक राणा कुम्भा था। उसके समय चित्तौड़ राज्य में 48 दुर्ग थे। उसने मालवा व गुजरात को हराया था। 1509 से संग्राम सिंह (राणा सांगा) यहाँ का शासक था जो काफी वीर और साहसी था और जिसे टाड ने 'सैनिक का भग्नावशेष' कहा। कहते हैं इसने भी बाबर को आगरे की ओर से हमला करने की सलाह दी थी।
(xii) कश्मीर– पहले तो यहाँ हिन्दू शासन था, परन्तु 1399 में यहाँ के हिन्दू शासक रामचन्द्र की उसने मुस्लिम मंत्री शाह मिर्जा ने हत्या कर दी और मुस्लिम शासन की स्थापना की। 1420 में यहाँ का शासक जैनुल आबदीन था जो एक योग्य, सहिष्णु और उदार शासक था और जिस वजह से उसे 'कश्मीर का अकबर' कहा जाता है। 1470 में इसकी मृत्युपरांत यहाँ अराजकता एवं अव्यवस्था फैल गई।
(xiii) खानदेश- बहमनी राज्य के विरुद्ध विद्रोह करके 1365 में मलिक अहमद ने खानदेश की स्थापना की थी। 1399 में उसकी मृत्यु के बाद खानदेश का पतन आरम्भ हो गया। परिस्थिति का फायदा उठाकर गुजरात ने उस पर अधिकार करने का प्रयत्न किया। आदिल खाँ के समय इसमें सफलता मिली। बाबर के समय यहाँ का शासक महमूद प्रथम था।
(xiv) बहमनी राज्य-1347 में महमूद तुगलक के समय हसन ने इस राज्य की स्थापना की थी। महमूद गवां के समय इसकी खूब उन्नति हुई। उसके बाद यह पतन की ओर अग्रसर हुआ। बाद में 5 राज्यों में बंट गया, जिनमें पारस्परिक द्वेष बराबर बना रहता था।
(xv) विजयनगर साम्राज्य- यह भी दक्षिण भारत का एक शक्तिशाली हिन्दू राज्य था। इसकी अपने पड़ोसी राज्य, बहमनी से हमेशा ठनी रही। बाबर के समय यहाँ का शासक कृष्णदेव राय था जो अत्यन्त योग्य एवं पराक्रमी था।

सैन्य अवस्था - बाबर के आक्रमण के समय भारत की सैन्य व्यवस्था अत्यन्त दोषपूर्ण थी। भारतीय सेना संसार में निर्मित होने वाले नये युद्ध उपकरणों से अपरिचित थी, सैनिकों में संगठन का अभाव था और सेना का विभाजन रूढ़िगत था।

सामाजिक अवस्था— हिन्दू और मुसलमान अपने मतभेद भुला कर सौहार्दता से रहने लगे थे। मुसलमानों ने भारतीय संस्कृति के प्रमुख तत्वों को ग्रहण करना आरम्भ कर दिया तथा उनमें सहिष्णुता और उदारता के भाव जागृत होने लगे। धार्मिक अत्याचार भी कम हो गये थे।

आर्थिक अवस्था- जिस समय बाबर ने भारत पर आक्रमण किया उस समय भारत धन सम्पन्न एवं समृद्धिशाली देश था जिसका प्रमुख कारण कृषि तथा व्यापार का सुन्दर सामंजस्य था। कृषि प्रधान देश होते हुए भी इस समय भारत विदेशों से व्यापार करता था जिससे अत्यधिक लाभ होता था।

हम कह सकते हैं कि बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा काफी शोचनीय थी, सैन्य दशा दोषपूर्ण थी, सामाजिक दशा इतनी बुरी नहीं थी और आर्थिक दशा एक दम अच्छी थी।

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