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अलाउद्दीन खिलजी की उपलब्धियों पर प्रकाश डालें।अथवा, अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण एवं सैन्य सुधारों पर प्रकाश डालें।

प्रश्न . अलाउद्दीन खिलजी की उपलब्धियों पर प्रकाश डालें।
अथवा, अलाउद्दीन खिलजी के बाजार नियंत्रण एवं सैन्य सुधारों पर प्रकाश डालें।

उत्तर- बाजार पर नियंत्रण-अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अलाउद्दीन ने एक विशाल एवं स्थायी सेना की व्यवस्था की थी। इस सेना को नकद वेतन दिया जाता था, परन्तु राज्य द्वारा विभिन्न कर लगाये जाने पर भी इतनी आमदनी नहीं हो पाती थी कि राज्य इस सेना का खर्च वहन कर सके। फलतः उसने सेना के वेतन में कटौती करने का निश्चय किया, परन्तु
इससे भी समस्या नहीं सुलझ सकती थी। वास्तव में जैसा कि इतिहासकार बरनी लिखता है-"यदि उतनी बड़ी सेना को साधारण वेतन भी दिया जाता तो राज्य का खजाना 5-6 वर्षों में ही समाप्त हो जाता।" इसके साथ यह भी समस्या थी कि अगर सैनिकों को पर्याप्त सुविधा नहीं प्रदान की गयी तो वे दक्षता से कार्य नहीं कर सकते थे। यह स्थिति सुल्तान के लिए अत्यन्त ही भयावह हो सकती थी। इस समस्या से निबटने के लिए सुल्तान ने एक अनूठा रास्ता निकाला। उसने बाजार एवं मूल्य-नियंत्रण का प्रयास किया जिससे कम वेतन में भी सैनिकों को आसानी से गुजारा हो
जाए। कुछ विद्वानों की यह भी मान्यता है कि अलाउद्दीन जनसाधारण के हितों को ध्यान में रखकर भी मूल्य नियंत्रण करता चाहता था परन्तु उसका उद्देश्य सस्ते दामों पर सैनिकों को आवश्यक वस्तुएँ मुहैया कराना ही था। इसके लिए बाजार एवं मूल्य नियंत्रण की व्यवस्था लागू की गयी।
    बाजार की सारी व्यवस्था दीवान-ए-रियासत नामक अधिकारी के जिम्मे सुपुर्द कर दी गयी। इस पद पर सुल्तान ने अपने विश्वासपात्र याकूब को नियुक्त किया। याकूब ने सभी वस्तुओं के लिए अलग-अलग बाजारों की व्यवस्था की। प्रत्येक बाजार के लिए एक-एक शहान (Sahana) नामक अधिकारी को नियुक्त किया गया। इनकी सहायता के लिए बरीद (Warida) नामक में वस्तुओं के मूल्य, माप-तौल इत्यादि की प्रतिदिन जाँच करते थे एवं इसके विषय में सुल्तान की सूचना दिया करते थे। बाजारों में व्यापारियों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए गुप्तचर भी बहाल किये गये थे।
    व्यापारियों की स्थिति के मुताबिक उन्हें दो श्रेणियों में विभक्त किया गया-
1. वैसे व्यापारी को शहर से सामान मंगवाकर नगर के व्यापारियों को दिया करते थे।
2. वैसे व्यापारी या बनिए जो नगर में थोक या खुदरा का व्यापार अपनी दुकानों में करते थे|
    इन सभी व्यापारियों की सूची बनाई गयी। उन्हें शहान-ए-मण्डी दफ्तर में अपने आपको पंजीकृत कराने के लिए कहा गया। सिर्फ पंजीकृत व्यापारियों को ही व्यापार करने की अनुमति प्रदान की गयी। इन्हें आवश्यक मात्रा में सामानों की आपूर्ति करनी पड़ती थी एवं निश्चित मूल्य पर अपनी वस्तुएँ बेचनी पड़ती थीं। इन सभी व्यापारियों के लिए यह आवश्यक बना दिया गया कि वे अपने परिवार के साथ नगर के भीतर ही रहें। साथ ही उन्हें चेतावनी भी दी गयी कि यदि
कि उनके व्यक्तिगत या सामूहिक कृतियों के चलते बाजार की व्यवस्था भंग हुई, तो उन्हें एवं उनके
परिवार के व्यक्तियों को दण्ड का भागी बनना पड़ेगा। दलालों को बाजार से निकालवा दिया गया। दलाली करने पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
    बाजार में अन्न की कमी नहीं होने देने के उद्देश्य से अनाज के रूप में ही लगान वसूल किया जाने लगा, जिसे राजकीय गोदामों में सुरक्षित रखा जाता था। किसानों को व्यापारियों के हाथों अनाज बेचने की मनाही कर दी गयी। सिर्फ आज्ञा-प्राप्त व्यापारी ही किसानों से सीधे अन्न खरीद सकते थे। अन्य आवश्यक वस्तुएँ जिनकी कमी थी उनकी पूर्ति का भार भी व्यापारियों पर ही था, परन्तु वे निश्चित मात्रा में ही सामान मंगा सकते थे। निर्धारित मूल्य की सूची व्यापारियों एवं बाजार के अधिकारियों के पास रहती थी। व्यापारियों के उचित लाभ का भी ध्यान रखा जाता था, परन्तु माप-तौल में गड़बड़ी होने पर कठोर दंड की व्यवस्था की गयी थी। इन आज्ञाओं का
उल्लंघन करने वाले व्यापारियों की कठोर दंड दिया जाता था। कहा जाता है कि कम माप-तौल का व्यवहार करने वाले व्यापारियों के शरीर से उतना ही गोश्त काट लिया जाता था। बाजार के नियमों को भंग करने वाले को दंड देने लिए सराय-अदल नामक पदाधिकारी था।
    राज्य की तरफ से व्यापारियों को सुविधा भी मिलती थी। यद्यपि उनके मुनाफा की राशि कम कर दी गयी, परन्तु उनसे हानि के खतरे को भी दूर करने का प्रयास किया गया। आवश्यकता पड़ने पर उन्हें व्यापार के लिए राज्य से आर्थिक सहायता भी दी जाती थी। कीमती एवं दुर्लभ वस्तुओं की बिक्री पर भी नियंत्रण था। इन उपायों का परिणाम संतोषप्रद निकला। बाजार में निश्चित मूल्य पर वस्तुएँ मिलने लगीं। किसी सामान की कमी भी नहीं रही। दंड के भय से माप-तौल की बेईमानी, चोर-बाजारी, सट्टा-बाजारी इत्यादि समाप्त हो गये। राजकीय गोदामों से अन्न की पूर्ति होने से अनाज का भाव काफी गिर गया एवं सस्ते मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध हो गया।
    खाद्यान्न की अपेक्षा इस समय कपड़े का मूल्य अधिक था। इसमें निर्धारित मूल्य पर मुनाफे की गुंजाइश भी कम ही थी, अतः कपड़े का व्यापार करने से व्यापारी हिचकते थे, अत: अलाउद्दीन ने कपड़े का व्यवसाय मुलतानी व्यापारियों को सौंप दिया। वे राजकोष से धन लेकर कपड़ा लाते एवं उसको बेचकर धन-कोष में जमा कर देते। इसके लिए उन्हें कमीशन प्राप्त होता था।
    कुछ विद्वानों की धारणा है कि अलाउद्दीन खिलजी का यह बाजार-नियंत्रण सारे देश में लागू न होकर सिर्फ दिल्ली में ही था। वरनी के कथन से भी इसकी पुष्टि होती है, परन्तु चूँकि यह व्यवस्था मुख्यतः सैनिकों के लाभ के लिए लागू की गयी थी, अतः इस बात की पूरी सम्भावना है कि राज्य के अन्य महत्वपूर्ण नगरों में भी ऐसी ही व्यवस्था की गयी होगी।
    इस बाजार नियंत्रण की नीति के परिणाम काफी लाभदायक हुए। इसके चलते अनाज एवं
अन्य वस्तुओं की कीमत सस्ती हो गयी। सैनिकों एवं अन्य नगर-निवासियों की उचित मूल्य पर
वस्तुएँ प्राप्त होने लगीं। चोरी बेईमानी आदि कठोर दंड के भय से बन्द हो गयी। अलाउद्दीन के जीवनपर्यन्त फिर वस्तुओं का मूल्य नहीं बढ़ा। प्रो० के० एस० लाल से अलाउद्दीन की नीति की समीक्षा करते हुए लिखा है -"What is of real importance in Alauddin's reign is not so much the cheapness of prices as the establishment of a fixed price in the market which was considered one of the wonders of the age" परन्तु इसके बावजूद यह स्वीकार करना पड़ता है कि इस व्यवस्था से सैनिकों को छोड़कर किसी अन्य वर्ग को (किसान, व्यापारी, कारीगर, जनसाधारण) का विशेष लाभ नहीं हो सका।
    इस तरह अपनी आर्थिक नीतियों द्वारा अलाउद्दीन खिलजी ने अपने राजनीतिक हितों की सुरक्षा
की। राज्य की आर्थिक व्यवस्था में भी इसके चलते सुधार हुआ।

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