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lord viliyam bentik ke sudhaaron par prakaash daalen | लॉर्ड विलियम बेंटिक के सुधारों पर प्रकाश डालें।

प्रश्न . लॉर्ड विलियम बेंटिक के सुधारों पर प्रकाश डालें।

उत्तर- 1828 ई० में लॉर्ड विलियम बेंटिक भारत का गवर्नर-जनरल बनकर आया। वह उन्मुक्त व्यापार और उन्मुक्त प्रतियोगिता की नीति का समर्थक था। वह अत्यन्त उदार और सुधारवादी था। वह प्रजा के कल्याण में ही शासक की शक्ति की वृद्धि चाहता था। वह युद्ध के बदले शान्ति एवं सुव्यवस्था चाहता था। विलियम बेंटिक पहला गवर्नर-जनरल था, जिसने कम्पनी में व्याप्त आर्थिक अस्त-व्यस्तता और प्रशासनिक दोषों को सुधारने के साथ-साथ कुछ लोककल्याणकारी कार्य भी किया। जिससे भारतीयों को लाभ हुआ। बेंटिक के सुधार कार्यों को हम निम्नलिखित तथ्य बिन्दुओं के अन्तर्गत रख सकते हैं-

(1) आर्थिक सुधार -  

लॉर्ड विलियम बेंटिक ने अपना ध्यान आर्थिक सुधारों की ओर दिया। अनवरत युद्धों के कारण कम्पनी की आर्थिक स्थिति जर्जर हो गयी थी। आय में कमी और व्यय में वृद्धि हो जाने के कारण कम्पनी को लगभग एक करोड़ रुपये का वार्षिक घाटा हो रहा था। अत: लॉर्ड विलियम बेंटिक ने सर्वप्रथम सैनिक तथा असैनिक अधिकारियों को शान्ति के समय दी जाने वाली भत्ता जिसे आधा बट्टा कहा जाता था बन्द कर दिया। असैनिक अधिकारियों के मासिक वेतन में भी कुछ कटौती की। इससे उसे सैनिक-असैनिक अधिकारियों का आक्रोश सहना पड़ा। उसने असैनिक प्रशासन व्यवस्था के अन्य खर्चों में भी कटौती की। उत्तर-पश्चिम प्रान्तों में बेटिक ने नई तरह से भू-राजस्व व्यवस्था की, जिससे कम्पनी की आय में वृद्धि हुई। उसने कम्पनी के व्यापार का भी विकास किया। इस तरह बेंटिक ने कम्पनी की आर्थिक अवस्था में काफी सुधार किया।

(2) सामाजिक सुधार-

लॉर्ड विलियम बेंटिक पहला गवर्नर-जनरल था, जिसने भारतीय समाज में व्याप्त दोषों को दूर करने का प्रयास किया। उसने अपने सुधारों के जरिये भारतीय समाज की निम्नलिखित बुराईयों को दूर किया-

(i) सती प्रथा का अन्त

 मध्ययुगीन भारतीय समाज की अनेक कुरीतियों में सती प्रथा का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान था। इस प्रथा के अनुसार जब किसी हिन्दु स्त्री का पति मर जाता था तो उसे उसके पति के चित्ता में बैठाकर उसके साथ ही जला दिया जाता था। बंगाल में इस प्रथा ने भयंकर रूप धारण कर लिया था। बेंटिक ने इस अमानुषिक प्रथा को समाप्त करने का निश्चय किया। उसने 1829 ई० में सती प्रथा के विरुद्ध नियम पास कर दिया। इस कानून के द्वारा सती प्रथा को प्रोत्साहन देने वालों को प्राणदण्ड देने की व्यवस्था की गई। प्रारम्भ में तो कट्टर हिन्दुओं ने इसका विरोध किया, लेकिन बेंटिक अटल रहा और इस प्रकार हिन्दू समाज के एक बहुत बड़े अभिशाप को दूर किया।

(ii) ठगी प्रथा का अन्त –

उत्तर भारत में ठगों का उपद्रव बहुत बढ़ गया था। वे ठग यात्रियों तथा अन्य लोगों को बहकाकर जंगल में ले जाते थे और उन्हें मार डालते थे। उन ठगों से भारतीय बहुत ही आतंकित रहते थे। अतः बेंटिक ने ठगों का पुरी तरह से दमन करने का निश्चय किया। यह कार्य उसने सम्पादित करने के लिए स्मिथ तथा मेजर स्लीमैन को सौंपा। दोनों ने सेना की सहायता से ठगों को चारों तरफ से घेर लिया, परिणामस्वरूप सैकड़ों ठग बन्दी बना लिए गए तथा उनके नेताओं को फाँसी दे दी गई। परिणाम यह हुआ कि उत्तरी भारत के निवासियों को ठगों के आतंक से मुक्ति मिली। यह भी बॅटिक का एक महत्त्वपूर्ण सुधार था।
    इसके अलावे उसने नरबलि निषेध, बालहत्या, दासप्रथा का अन्त, धर्म परिवर्त्तन की सुविधा
तथा प्रेस की स्वतंत्रता के लिए कई कानून बनाए।

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